Thursday, September 17, 2009

अरज

क्या याद है तुम्हे
पहाडो से आते आते चाय पीने के बहाने
मेरी उड़ती लट को कान के पीछे किया था
धीमे से कुछ कहा था
मैं तुम्हारा हूँ
आजीवन रहूँगा

आज फिर तमन्ना मचली है
लट फिर उड़ निकली है
पहाड़ तो नही, खुला आसमा है
तुम मेरे साथ हो
चाय की दूकान भी यही नुक्कड़ पे खुली है

अरज करती हूँ पिया
जब भी राह तकूँ तुम्हारी
भरी भरी पलकें हो
आना उसपे तुम ज़रूर
गोद में सर रखके मेरी
लटो को सुलझाना ज़रूर

भागवत

एक शास्त्री भागवत को हाथों में लेके
यू चूम रहा था अधरों से
आँखों से भी लगाया उसने
मनो हर अक्षर समझ में आया हो उसकी

समय बीता प्रतीक्षा में
आश्चर्य चकित हो सोचती रही




आज शास्त्री की विधवा का चेहरा देखकर
उसके हाथों को चूमकर
आँखों के चमकते तारों से
समझ में आया है हर अक्षर
भागवत का मुझे

Friday, September 4, 2009

कदे ते राती आ सुपने विच

कदे ते राती आ सुपने विच
उम्मीद जग्गे तेरे मिलण दी

दिले भार बैठ्या होया हुन तक
तेरे जान वेला तेनु चूम न सक्की
मिल न सक्की सा उख्दया वेला
गले वि न ला सक्की

आज्ज तेरी याद आई मुड़ के
ले आई तेनु मेरियाँ मुरादा विच
मेनू केंनं दे अंख नु चूम लेन दे
विचोडेयाँ दा गम सहन लेन दे

आज्ज आया वे ते
दो घड़ी बेजा वे बाबुला
जाना ते तू है ही अपने लोक नु
इस लोक दे मारया नु
मिलन दा सुख भोग लेन दे

कदों अवेंगा तू वापिस ख्याला विच
जिंदडी दा की भरोसा ऐ
तारयाँ दा नूर ले के आजा वे हून
भार दिल दा डोलदा ऐ


बैठी आ बूए अग्गे
रस्ता तेरा उदीक्दियाँ
सयिओं आन्दा नई तू
मूक चलिया सांसा वि मेरियाँ
तेनु वेखे बिना चैन नैयो आन्दा वे


कदे ते राती सुपने विच
उम्मीद जग्गे तेरे मिलण दी






--------श्रधांजलि

हया

कुछ खुल के कुछ मुस्कुरा के आ ऐ हया
कुछ अनकहे राजों को सुना
लम्हों को यू ही न बीत जाने दे
खिलती हुई सर्दी की धूप के जैसे आंगन में गिर जाने दे


रूठना बिगड़ना यही तो ढंग है मुहब्बत का
मानने मनाने में ज़िन्दगी को टूट के मिल जाने दे


पलकें यूँ उठा के मुस्कुरा न तू
बिखरी जुल्फों को सम्भाल न तू
जानता है तू मुझे जानती हू मैं तुझे
आज ईकरार हो जाने दे

दिल की बातें बयां कर के
मुझको आगोश में आने दे
रिम झिम बूंदों की सरगम में
ख़ुद को मुझमे समाने दे

कुछ खुल के कुछ मुस्कुरा के हया
लम्हों को यू ही बीत जाने दे




Wednesday, September 2, 2009

रिम झिम

रिम झिम रिम झिम बरसे बददल ,
वाहवान वी ठंड्दियाँ चलियाँ
तू ना आया बेदर्दा वे
मिट्टियाँ वी बह चलियाँ


बददल घिरे ने काले काले,
दिसदा नियो अम्बर
जुल्मी आवे ते रंग वी दिखन
जल गई मैं चूल्याँ दे बाले

डालियाँ झूक दियां बोझ दे मारे
टिप टिप अश्रु भान्दियाँ
मोह दी मारी रो न सकी मैं
आन्द्रा मेरा उडारिया मारे

किंवे गुजरे सावन पेढा
खिल खिल वाजां मारे
बैठी देउडी मेंदी लाके
नैन वरांडे गाडे

यार आवे ते नचके गाके
मी वसदे ते फूल खिलाके
बिचली चमके शोर मचाके
सत रंगादी वेळ सजावा


रिम झिम रिम झिम बरसे बददल,
वाहवा वी ठंड्दियाँ चलियाँ

चमकता तारा

जब से सांसो का ये सफर शुरू किया है
तब से एक सवाल ख़ुद ही से करता हूँ
कौन है तू ऐ दिल
जो हरदम तारों की तरह चमकता है

सीधा सादा सा ख्याल उमड़ पड़ता है
तुम्हारी गहरायिओं में
सिर्फ़ इतना ही दीख पड़ता है मुझे
है कोई नही इतना जितना तुम्हारे पास देखा है


रूहे मालिक है मेरी बहुत ज़्यादा
फिर भी तुम्हारी ही परछाई का मारा हूँ
तुम्हे परखने की जुर्रत की मैंने
चमकते तारों और सुबह के उगते सूरज से हरा हूँ


तुमने जो मुझे दिखलाया
तुम्हे देखने के काबिल नही मैं
बहुत दूर हो पहुँच से मेरी
बन्दिगी ओ भरोसा करता हूँ तेरे रहमो करम की मैं


फकत जब भी समझू तुझे कम ऐ दिल
काबिलियत तेरी ओ ताकत ऐ रूह
इसलिए नही के तू सबसे बड़ा है
इसलिए के मैं छोटा हूँ तेरे सामने


मुश्किल है मेरे लिए ये कहना
हरदम है तेरे संग रहना
दिल की गहरायिओं से माना है तुझे
है तू मेरा चमकता तारा









रहीम के दोहे

छिमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात।
कह रहीम हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात॥1॥

तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥2॥

दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुख काहे होय॥3॥

खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान।
रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान॥4॥

जो रहीम ओछो बढ़ै, तौ अति ही इतराय।
प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ो टेढ़ो जाय॥5॥

बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।
रहिमन बिगरे दूध को, मथे न माखन होय॥6॥

आब गई आदर गया, नैनन गया सनेहि।
ये तीनों तब ही गये, जबहि कहा कछु देहि॥7॥

खीरा सिर ते काटिये, मलियत नमक लगाय।
रहिमन करुये मुखन को, चहियत इहै सजाय॥8॥

चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
जिनको कछु नहि चाहिये, वे साहन के साह॥9॥

जे गरीब पर हित करैं, हे रहीम बड़ लोग।
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग॥10॥

जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय।
बारे उजियारो लगे, बढ़े अँधेरो होय॥11॥

रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलवारि॥12॥

बड़े काम ओछो करै, तो न बड़ाई होय।
ज्यों रहीम हनुमंत को, गिरिधर कहे न कोय॥13॥

माली आवत देख के, कलियन करे पुकारि।
फूले फूले चुनि लिये, कालि हमारी बारि॥14॥

एकहि साधै सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहि सींचबो, फूलहि फलहि अघाय॥15॥

रहिमन वे नर मर गये, जे कछु माँगन जाहि।
उनते पहिले वे मुये, जिन मुख निकसत नाहि॥16॥

रहिमन विपदा ही भली, जो थोरे दिन होय।
हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय॥17॥

बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर॥18॥

काल करे सो आज कर, आज करे सो अब्ब।
पल में परलय होयगी, बहुरि करेगा कब्ब॥19॥

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसा बुरा न कोय॥20॥

निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय।
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुहाय॥21॥

रहिमन निज मन की व्यथा, मन में राखो गोय।
सुनि इठलैहैं लोग सब, बाटि न लैहै कोय॥22॥

रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर।
जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर॥23॥

बानी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोय।
औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय॥24॥

मन मोती अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय।
फट जाये तो ना मिले, कोटिन करो उपाय॥25॥

दोनों रहिमन एक से, जब लौं बोलत नाहिं।
जान परत हैं काक पिक, ऋतु वसंत कै माहि॥26॥

रहिमह ओछे नरन सो, बैर भली ना प्रीत।
काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँति विपरीत॥27॥

रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय॥28॥

रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून॥29॥

वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
बाँटनवारे को लगै, ज्यौं मेंहदी को रंग॥30॥

-रहीम
कदम चलते गए जहाँ रास्तों पर
मंजलों का पता ही न था


कुफ्रे गम में क्या कुछ होश रहता है भला

कबीर के दोहे

दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय ॥

बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नही फल लागे अति दूर ॥

साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय।
सार-सार को गहि रहै थोथा देई उडाय॥

साँई इतना दीजिए जामें कुटुंब समाय ।
मैं भी भूखा ना रहूँ साधु न भुखा जाय॥

जो तोको काँटा बुवै ताहि बोव तू फूल।
तोहि फूल को फूल है वाको है तिरसुल॥

उठा बगुला प्रेम का तिनका चढ़ा अकास।
तिनका तिनके से मिला तिन का तिन के पास॥

सात समंदर की मसि करौं लेखनि सब बनराइ।
धरती सब कागद करौं हरि गुण लिखा न जाइ॥

साधू गाँठ न बाँधई उदर समाता लेय।
आगे पाछे हरी खड़े जब माँगे तब देय॥

चौदह सौ पचपन गये, चंद्रवार, एक ठाट ठये।
जेठ सुदी बरसायत को पूनरमासी प्रकट भये।।

माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय ।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय ॥

माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर ।
कर का मन का डार दे, मन का मनका फेर ॥

तिनका कबहुँ ना निंदये, जो पाँव तले होय ।
कबहुँ उड़ आँखो पड़े, पीर घानेरी होय ॥

गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागूं पाँय ।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो मिलाय ॥

सुख मे सुमिरन ना किया, दु:ख में करते याद ।
कह कबीर ता दास की, कौन सुने फरियाद ॥

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ॥

कबीरा ते नर अँध है, गुरु को कहते और ।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ॥

माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर ।
आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर ॥

रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।
हीरा जन्म अमोल था, कोड़ी बदले जाय ॥

जैसा भोजन खाइये, तैसा ही मन होय ।
जैसा पानी पीजिये, तैसी बानी सोय ॥

जो तोको काँटा बुवै, ताहि बुवै तू फूल ।
तोहि फूल को फूल है,वाको है तिरशूल ॥

मूरख को समुझावते, ज्ञान गाँठि का जाय ।
कोयला होय न ऊजला, सौ मन साबुन लाय ॥

शब्द सम्हारे बोलिये,शब्द के हाँथ न पाँव ।
एक शब्द औषधि करे, एक शब्द करे घाव ॥

- कबीर

Tuesday, June 9, 2009

जुबां

ज़बां बाटने का घुमा ऐसा होता है कभी
न कोई समझे न समझाए...


जैसे दो अन्पड मिले हो नुक्कड़ पे मोहब्बत ऐ बयां के लिए !!

ताने बन

ख़ुद को न जान पाए उसको क्या जानेंगे ....!...
रहमत हो गर ज़र्रे पे भी नक्शे उल्फत संभल जाए...!!
खयालों के ताने बने बुनते रहते है ...!...
न जाने कौन सा सिरा किस्से से कहाँ मिल जाए...!!
तकदीर ऐसी की शिकवा भी न कर सके ...!...
उस रह से गुज़रे जो शिकन छोड़ जाए...!!
मुहब्बत में वोह क्या क्या न किए...!...
खामोशी सुकूं बस फिर भी लफ्जों में ही रह जाए...!!

Monday, June 8, 2009

दिल अगर मरने का हो तो

दिल अगर मरने का हो तो देर ना करिए हुज़ूर....
कल दिन बड़ा अच्छा है..कोई भी काम करने का...!.............
जो बात ना बने उन मंदिरो या मस्जिदो से......
जो जी मे आए कीजिए, फ़ायदा क्या फिर डरने का...!

Friday, June 5, 2009

चलो चाँद नापते है

चलो चाँद नापते हैं
तुम ज़रा सूरज वाली और चलना
मैं ज़मीन की तरफ का सिरा पकड़ती हूँ
देखो आँखें ना भींच लेना रास्ते में
बहुत रोशनी है आगे
ज़रा सा रास्ता भूले तो किसी उल्का में फँस जाओगे
फिर मुझे सिरा पकड़ के उल्टा चलना पड़ेगा
कितना अच्छा हो ना कि उस वक़्त
तुम पीछे से आके मुझे चौंका दो!
मैं सैय्यार की ज़मीन पे गिरते गिरते बचूँ
और तुम मुझे थाम के
चाँद कि ज़मीन पे बिठा दो
और फिर धुआँ हो जाए हर नाप-ओ-सिरा
कोई डोर ना बचे दरमियाँ……
और फिर चाँद नापे
दूरियाँ हमारे बीच की
मगर सिरा ना ढूँढ पाए
कुछ ऐसे भी एक बार मोहब्बत करते हैं
चलो चाँद नापते हैं

छुट्टन सा पेड

घर के कोने पे रहता वो छुट्टन सा पेड़
याद है! एकदम गुलमोहर के सामने ही है
कुछ कुछ हरा भरा बुनता रहता था वो
गुलमोहर को कहा करता था अक्सर कि
एक दिन तुमसे ऊँचा बढ़ के दिखलाऊंगा
आज देखा था उस बच्चू को मैंने ..
सर्दी की धूप वो में नहा रहा था
ऐंवें ही कुछ कुछ तो गुनगुना रहा था
मैंने भी मुस्कुरा के मुंह फेर लिया
पलटी तो देखा अब वो कराह रहा था
एक आदमी उसपे चढ़ के उसको काट रहा था
एक छोटी सी टहनी गिरी तो आह की आवाज़ मुझमें से आई
दूसरी कट ही रही थी तो मैंने आँखें भींच ली
एक आंख से देखा तो वो भी ढेह पड़ी
निचले घर के लोगों को छुट्टन पेड़ से खतरा था
कहते हैं अगर ये बड़ा हो गया तो क्या पता
कोई इसपर चढ़ के घर में घुस आया तो!
सुना है कभी की एक बढ़ते बच्चे की
परवरिश से किसी को खतरा हो जाए?
मेरा छुटन पेड़ .. हरे हरे मुलायम पत्तों वाला
कभी बड़ा नही हो सकता वो बच्चू.....
गुलमोहर आज शाम को उसपर मुस्कुरा रहा था
और वो बच्चू! बेलिबास सा ख़ुद ही में गढा जा रहा था
सर्दी की सांझ है अभी और वो कराह रहा है
एक बार सोचा की चाय दे आऊं उसको
कोई इंसान भी तो नहीं है न वो कि
उसको घर ले आऊं और सबसे बचा के रखूं
उसको मैंने यूँ ही तड़पती निगाह से देख आज तो वो बोल पडा
कि कभी बड़ा नही होना
कुछ कुछ क्या कुछ भी नहीं बुनना
तुम्हारा छुट्टन पेड़ कभी बड़ा नहीं हो सकता..