देते रहते हैं फिर भी ज़ख्म पर ज़ख्म वो
हम ही रूठे रह जाते हैं
कह नहीं पाते गिले-शिकवों का सिलसिला हम
बहाते ही रह जाते है अश्क ओ अश्क हर दम
दिया खुदा ने नूरे जहाँ उनको
करते है फक्र वो जहनियत का
न देखा कभी उन्होंने क्या नासूर है हमारा
छिड़कते जाते है नमक हर वक़्त वो
खैर करे खुदा उन पर
हमे तो आदत ही है जीने की ऐसे
बक्श दे थोडा सुकून उनको भी
दे सके दुआ हमे भी वैसे
जहाँ की खुशियाँ आयें दामन में हमारे
नूर बनके नासूर भी चमक जाएँ जैसे
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