Tuesday, July 20, 2010

दुआ

नहीं जानते कि वो दर्द क्या है
देते रहते हैं फिर भी ज़ख्म पर ज़ख्म वो
हम ही रूठे रह जाते हैं
कह  नहीं पाते गिले-शिकवों का सिलसिला हम
बहाते ही रह जाते है अश्क ओ अश्क हर दम

दिया खुदा ने नूरे जहाँ उनको
करते है फक्र वो जहनियत का
न देखा कभी उन्होंने क्या नासूर है हमारा
छिड़कते  जाते है नमक हर वक़्त वो

खैर करे खुदा उन पर
हमे तो आदत ही है जीने की ऐसे
बक्श दे थोडा सुकून उनको भी
दे सके दुआ हमे भी वैसे
जहाँ की खुशियाँ आयें  दामन में हमारे
नूर बनके नासूर भी चमक जाएँ जैसे

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4 comments:

संजय भास्‍कर said...

बहुत बढ़िया .......लिखा आपने

संजय भास्‍कर said...

किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।

संजय भास्‍कर said...

मुझे आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा ! आप बहुत ही सुन्दर लिखते है ! मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है !

Namrata said...

Well said dear!! Really heart touching!!