देते रहते हैं फिर भी ज़ख्म पर ज़ख्म वो
हम ही रूठे रह जाते हैं
कह नहीं पाते गिले-शिकवों का सिलसिला हम
बहाते ही रह जाते है अश्क ओ अश्क हर दम
दिया खुदा ने नूरे जहाँ उनको
करते है फक्र वो जहनियत का
न देखा कभी उन्होंने क्या नासूर है हमारा
छिड़कते जाते है नमक हर वक़्त वो
खैर करे खुदा उन पर
हमे तो आदत ही है जीने की ऐसे
बक्श दे थोडा सुकून उनको भी
दे सके दुआ हमे भी वैसे
जहाँ की खुशियाँ आयें दामन में हमारे
नूर बनके नासूर भी चमक जाएँ जैसे
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4 comments:
बहुत बढ़िया .......लिखा आपने
किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।
मुझे आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा ! आप बहुत ही सुन्दर लिखते है ! मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है !
Well said dear!! Really heart touching!!
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