Tuesday, June 9, 2009

जुबां

ज़बां बाटने का घुमा ऐसा होता है कभी
न कोई समझे न समझाए...


जैसे दो अन्पड मिले हो नुक्कड़ पे मोहब्बत ऐ बयां के लिए !!

ताने बन

ख़ुद को न जान पाए उसको क्या जानेंगे ....!...
रहमत हो गर ज़र्रे पे भी नक्शे उल्फत संभल जाए...!!
खयालों के ताने बने बुनते रहते है ...!...
न जाने कौन सा सिरा किस्से से कहाँ मिल जाए...!!
तकदीर ऐसी की शिकवा भी न कर सके ...!...
उस रह से गुज़रे जो शिकन छोड़ जाए...!!
मुहब्बत में वोह क्या क्या न किए...!...
खामोशी सुकूं बस फिर भी लफ्जों में ही रह जाए...!!

Monday, June 8, 2009

दिल अगर मरने का हो तो

दिल अगर मरने का हो तो देर ना करिए हुज़ूर....
कल दिन बड़ा अच्छा है..कोई भी काम करने का...!.............
जो बात ना बने उन मंदिरो या मस्जिदो से......
जो जी मे आए कीजिए, फ़ायदा क्या फिर डरने का...!

Friday, June 5, 2009

चलो चाँद नापते है

चलो चाँद नापते हैं
तुम ज़रा सूरज वाली और चलना
मैं ज़मीन की तरफ का सिरा पकड़ती हूँ
देखो आँखें ना भींच लेना रास्ते में
बहुत रोशनी है आगे
ज़रा सा रास्ता भूले तो किसी उल्का में फँस जाओगे
फिर मुझे सिरा पकड़ के उल्टा चलना पड़ेगा
कितना अच्छा हो ना कि उस वक़्त
तुम पीछे से आके मुझे चौंका दो!
मैं सैय्यार की ज़मीन पे गिरते गिरते बचूँ
और तुम मुझे थाम के
चाँद कि ज़मीन पे बिठा दो
और फिर धुआँ हो जाए हर नाप-ओ-सिरा
कोई डोर ना बचे दरमियाँ……
और फिर चाँद नापे
दूरियाँ हमारे बीच की
मगर सिरा ना ढूँढ पाए
कुछ ऐसे भी एक बार मोहब्बत करते हैं
चलो चाँद नापते हैं

छुट्टन सा पेड

घर के कोने पे रहता वो छुट्टन सा पेड़
याद है! एकदम गुलमोहर के सामने ही है
कुछ कुछ हरा भरा बुनता रहता था वो
गुलमोहर को कहा करता था अक्सर कि
एक दिन तुमसे ऊँचा बढ़ के दिखलाऊंगा
आज देखा था उस बच्चू को मैंने ..
सर्दी की धूप वो में नहा रहा था
ऐंवें ही कुछ कुछ तो गुनगुना रहा था
मैंने भी मुस्कुरा के मुंह फेर लिया
पलटी तो देखा अब वो कराह रहा था
एक आदमी उसपे चढ़ के उसको काट रहा था
एक छोटी सी टहनी गिरी तो आह की आवाज़ मुझमें से आई
दूसरी कट ही रही थी तो मैंने आँखें भींच ली
एक आंख से देखा तो वो भी ढेह पड़ी
निचले घर के लोगों को छुट्टन पेड़ से खतरा था
कहते हैं अगर ये बड़ा हो गया तो क्या पता
कोई इसपर चढ़ के घर में घुस आया तो!
सुना है कभी की एक बढ़ते बच्चे की
परवरिश से किसी को खतरा हो जाए?
मेरा छुटन पेड़ .. हरे हरे मुलायम पत्तों वाला
कभी बड़ा नही हो सकता वो बच्चू.....
गुलमोहर आज शाम को उसपर मुस्कुरा रहा था
और वो बच्चू! बेलिबास सा ख़ुद ही में गढा जा रहा था
सर्दी की सांझ है अभी और वो कराह रहा है
एक बार सोचा की चाय दे आऊं उसको
कोई इंसान भी तो नहीं है न वो कि
उसको घर ले आऊं और सबसे बचा के रखूं
उसको मैंने यूँ ही तड़पती निगाह से देख आज तो वो बोल पडा
कि कभी बड़ा नही होना
कुछ कुछ क्या कुछ भी नहीं बुनना
तुम्हारा छुट्टन पेड़ कभी बड़ा नहीं हो सकता..