Tuesday, October 12, 2010

कुछ हूँ भी है  कुछ अहम भी
ज़िन्दगी के थपेड़ों की नरमी भी

न जाने किस मोड़ पे मिलना होगा अब


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Tuesday, July 20, 2010

दुआ

नहीं जानते कि वो दर्द क्या है
देते रहते हैं फिर भी ज़ख्म पर ज़ख्म वो
हम ही रूठे रह जाते हैं
कह  नहीं पाते गिले-शिकवों का सिलसिला हम
बहाते ही रह जाते है अश्क ओ अश्क हर दम

दिया खुदा ने नूरे जहाँ उनको
करते है फक्र वो जहनियत का
न देखा कभी उन्होंने क्या नासूर है हमारा
छिड़कते  जाते है नमक हर वक़्त वो

खैर करे खुदा उन पर
हमे तो आदत ही है जीने की ऐसे
बक्श दे थोडा सुकून उनको भी
दे सके दुआ हमे भी वैसे
जहाँ की खुशियाँ आयें  दामन में हमारे
नूर बनके नासूर भी चमक जाएँ जैसे

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Thursday, May 27, 2010

khush


na fikr, na ashq, na itaab, na gila hai koi
aaj apne jism ke bahar kitni khush huun main

tujse muhabbat ka shauq is kadar hua hai
birha ki har aah bhi kahe, ke khush huun main

sadiyan guzri hai intezar e wasl mein
sitara asmaan me mila, ke khush huun main

jo na mila kabhi hume, uski bhi nam hai ankhe
kaise bataun, apni guzar pe, kitni khush huun main

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मी


मी बस्या अम्बर तों
जग सिमटन लगदा ऐ
किताबाँ पन्नेयाँ तो
जिंद जान निकल औंदी ऐ
हर ख्याल भिजोंदा जांदा ऐ
दुनिया दा हर रंग निखरदा जांदा ऐ


मी दे धागे ऊपर निचे
धरती अम्बर सिल्दे ने
अस्सी ओनु मिलन लग्देयाँ
रूह दे मायने बदलने लगदे ने
कदे न वेख्या होवे जीनु
ओयियो रंग विच घुल्दे जांदे ने
मी दी डोर ते झुल्दे होए
अम्बर तो वि अग्गे निकल जांदे ने

मी नाल रिश्ता एहोजा सदा
भिजजे बिना रह सके ना कोई
छुन्दे ई जल जांदे ने
दूबेयाँ नाल निकल आंदे ने
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Monday, February 8, 2010





ज़िन्दगी का प्रथम प्रेरणा दायक पुरुस्कार: Sunshine Blog Award

Monday, January 25, 2010

बिसात

रोज़ मर्रा की मामूलन आवाज़ों में


शाम कि नमाज़ यूँ ही घुल जाती है


रूहानियत का जायका चाय काफी में आता है


फिर भी हलक में इबादत अटकने लग जाती है


रोज़ भूल जाते है हम है भी के नहीं


काश इक दिन आके कह दे वो


हां तुम हो, मेरी ही बिसात के प्यादे


दांव लगा है, आखिर तक खेलना है


एक जान, एक नया तमाशा आने तक


तुम होगे बुनियाद उसकी


चौसठ ओ बिसात मेरी ही कहलाएगी

तमन्ना

तमन्ना मचल रही है फिर
चाहिए थोड़ी सी ज़मीं, थोड़ी सी मिटटी,
बनाना है इक आंगन, इक झूला,
इक छत्त , इक चूल्हा

गुज़र के जाने को हो , हवा उस घर से,
शाख-पत्तों को हिलाकर
धुप में सूखते दुप्पटे को बुलाकर
आने को है कोई , गुड लेकर
इक भूला