कुछ हूँ भी है कुछ अहम भी
ज़िन्दगी के थपेड़ों की नरमी भी
न जाने किस मोड़ पे मिलना होगा अब
~~~~
Tuesday, October 12, 2010
Tuesday, July 20, 2010
दुआ
नहीं जानते कि वो दर्द क्या है
देते रहते हैं फिर भी ज़ख्म पर ज़ख्म वो
हम ही रूठे रह जाते हैं
कह नहीं पाते गिले-शिकवों का सिलसिला हम
बहाते ही रह जाते है अश्क ओ अश्क हर दम
दिया खुदा ने नूरे जहाँ उनको
करते है फक्र वो जहनियत का
न देखा कभी उन्होंने क्या नासूर है हमारा
छिड़कते जाते है नमक हर वक़्त वो
खैर करे खुदा उन पर
हमे तो आदत ही है जीने की ऐसे
बक्श दे थोडा सुकून उनको भी
दे सके दुआ हमे भी वैसे
जहाँ की खुशियाँ आयें दामन में हमारे
नूर बनके नासूर भी चमक जाएँ जैसे
~~~~~
देते रहते हैं फिर भी ज़ख्म पर ज़ख्म वो
हम ही रूठे रह जाते हैं
कह नहीं पाते गिले-शिकवों का सिलसिला हम
बहाते ही रह जाते है अश्क ओ अश्क हर दम
दिया खुदा ने नूरे जहाँ उनको
करते है फक्र वो जहनियत का
न देखा कभी उन्होंने क्या नासूर है हमारा
छिड़कते जाते है नमक हर वक़्त वो
खैर करे खुदा उन पर
हमे तो आदत ही है जीने की ऐसे
बक्श दे थोडा सुकून उनको भी
दे सके दुआ हमे भी वैसे
जहाँ की खुशियाँ आयें दामन में हमारे
नूर बनके नासूर भी चमक जाएँ जैसे
~~~~~
Thursday, May 27, 2010
khush
na fikr, na ashq, na itaab, na gila hai koi
aaj apne jism ke bahar kitni khush huun main
tujse muhabbat ka shauq is kadar hua hai
birha ki har aah bhi kahe, ke khush huun main
sadiyan guzri hai intezar e wasl mein
sitara asmaan me mila, ke khush huun main
jo na mila kabhi hume, uski bhi nam hai ankhe
kaise bataun, apni guzar pe, kitni khush huun main
~~
aaj apne jism ke bahar kitni khush huun main
tujse muhabbat ka shauq is kadar hua hai
birha ki har aah bhi kahe, ke khush huun main
sadiyan guzri hai intezar e wasl mein
sitara asmaan me mila, ke khush huun main
jo na mila kabhi hume, uski bhi nam hai ankhe
kaise bataun, apni guzar pe, kitni khush huun main
~~
मी
मी बस्या अम्बर तों
जग सिमटन लगदा ऐ
किताबाँ पन्नेयाँ तो
जिंद जान निकल औंदी ऐ
हर ख्याल भिजोंदा जांदा ऐ
दुनिया दा हर रंग निखरदा जांदा ऐ
मी दे धागे ऊपर निचे
धरती अम्बर सिल्दे ने
अस्सी ओनु मिलन लग्देयाँ
रूह दे मायने बदलने लगदे ने
कदे न वेख्या होवे जीनु
ओयियो रंग विच घुल्दे जांदे ने
मी दी डोर ते झुल्दे होए
अम्बर तो वि अग्गे निकल जांदे ने
मी नाल रिश्ता एहोजा सदा
भिजजे बिना रह सके ना कोई
छुन्दे ई जल जांदे ने
दूबेयाँ नाल निकल आंदे ने
~~
Monday, January 25, 2010
बिसात
शाम कि नमाज़ यूँ ही घुल जाती है
रूहानियत का जायका चाय काफी में आता है
फिर भी हलक में इबादत अटकने लग जाती है
रोज़ भूल जाते है हम है भी के नहीं
काश इक दिन आके कह दे वो
हां तुम हो, मेरी ही बिसात के प्यादे
दांव लगा है, आखिर तक खेलना है
एक जान, एक नया तमाशा आने तक
तुम होगे बुनियाद उसकी
चौसठ ओ बिसात मेरी ही कहलाएगी
तमन्ना
तमन्ना मचल रही है फिर
चाहिए थोड़ी सी ज़मीं, थोड़ी सी मिटटी,
बनाना है इक आंगन, इक झूला,
इक छत्त , इक चूल्हा
गुज़र के जाने को हो , हवा उस घर से,
शाख-पत्तों को हिलाकर
धुप में सूखते दुप्पटे को बुलाकर
आने को है कोई , गुड लेकर
इक भूला
चाहिए थोड़ी सी ज़मीं, थोड़ी सी मिटटी,
बनाना है इक आंगन, इक झूला,
इक छत्त , इक चूल्हा
गुज़र के जाने को हो , हवा उस घर से,
शाख-पत्तों को हिलाकर
धुप में सूखते दुप्पटे को बुलाकर
आने को है कोई , गुड लेकर
इक भूला
Subscribe to:
Posts (Atom)