Monday, January 25, 2010

तमन्ना

तमन्ना मचल रही है फिर
चाहिए थोड़ी सी ज़मीं, थोड़ी सी मिटटी,
बनाना है इक आंगन, इक झूला,
इक छत्त , इक चूल्हा

गुज़र के जाने को हो , हवा उस घर से,
शाख-पत्तों को हिलाकर
धुप में सूखते दुप्पटे को बुलाकर
आने को है कोई , गुड लेकर
इक भूला

1 comment:

संजय भास्‍कर said...

प्रशंसनीय रचना - बधाई