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Zindagi
Tuesday, January 12, 2010
रास्ता
गए थे जहाँ मेले में मिलने के लिए
रह गए खुद ही गुम हो कर
आवाज़ देते रहे उन आरजुओं को
जिनका रास्ता ही पता न था
1 comment:
शरद कोकास
said...
द्वन्द्व की सुन्दर अभिव्यक्ति है यह ।
March 7, 2010 at 1:15 PM
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1 comment:
द्वन्द्व की सुन्दर अभिव्यक्ति है यह ।
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