क्या याद है तुम्हे
पहाडो से आते आते चाय पीने के बहाने
मेरी उड़ती लट को कान के पीछे किया था
धीमे से कुछ कहा था
मैं तुम्हारा हूँ
आजीवन रहूँगा
आज फिर तमन्ना मचली है
लट फिर उड़ निकली है
पहाड़ तो नही, खुला आसमा है
तुम मेरे साथ हो
चाय की दूकान भी यही नुक्कड़ पे खुली है
अरज करती हूँ पिया
जब भी राह तकूँ तुम्हारी
भरी भरी पलकें हो
आना उसपे तुम ज़रूर
गोद में सर रखके मेरी
लटो को सुलझाना ज़रूर
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
6 comments:
बेहतरीन । आभार।
स्वप्निल अरज
खूबसूरत रचना
pyari mithi kavita under
बहुत सुन्दर प्रेम कविता है मन ऊब-डूब रहा है लेकिन मुझे जीवन यदु की पंक्तियाँ याद आरही हैं .." पहले गीत लिखूंगा रोटी पर फिर लिखूंगा तेरी चोटी पर .."
Machli hui tammnayon ka safar atyant khubsurat aur romanchak hai....
Congratulations Tamanna, on winning the Sunshine Blog Award. It gives us immense pleasure to nominate you for the award. We admire how beautifully you articulate various emotions of life. It truly inspires us and shows us Life is beautiful. We wish you lot of success. http://craftideasforall.blogspot.com
Post a Comment