Thursday, September 17, 2009

अरज

क्या याद है तुम्हे
पहाडो से आते आते चाय पीने के बहाने
मेरी उड़ती लट को कान के पीछे किया था
धीमे से कुछ कहा था
मैं तुम्हारा हूँ
आजीवन रहूँगा

आज फिर तमन्ना मचली है
लट फिर उड़ निकली है
पहाड़ तो नही, खुला आसमा है
तुम मेरे साथ हो
चाय की दूकान भी यही नुक्कड़ पे खुली है

अरज करती हूँ पिया
जब भी राह तकूँ तुम्हारी
भरी भरी पलकें हो
आना उसपे तुम ज़रूर
गोद में सर रखके मेरी
लटो को सुलझाना ज़रूर

6 comments:

हेमन्त कुमार said...

बेहतरीन । आभार।

M VERMA said...

स्वप्निल अरज
खूबसूरत रचना

mehek said...

pyari mithi kavita under

शरद कोकास said...

बहुत सुन्दर प्रेम कविता है मन ऊब-डूब रहा है लेकिन मुझे जीवन यदु की पंक्तियाँ याद आरही हैं .." पहले गीत लिखूंगा रोटी पर फिर लिखूंगा तेरी चोटी पर .."

creativenimi said...

Machli hui tammnayon ka safar atyant khubsurat aur romanchak hai....

creativenimi said...

Congratulations Tamanna, on winning the Sunshine Blog Award. It gives us immense pleasure to nominate you for the award. We admire how beautifully you articulate various emotions of life. It truly inspires us and shows us Life is beautiful. We wish you lot of success. http://craftideasforall.blogspot.com