Wednesday, September 2, 2009

चमकता तारा

जब से सांसो का ये सफर शुरू किया है
तब से एक सवाल ख़ुद ही से करता हूँ
कौन है तू ऐ दिल
जो हरदम तारों की तरह चमकता है

सीधा सादा सा ख्याल उमड़ पड़ता है
तुम्हारी गहरायिओं में
सिर्फ़ इतना ही दीख पड़ता है मुझे
है कोई नही इतना जितना तुम्हारे पास देखा है


रूहे मालिक है मेरी बहुत ज़्यादा
फिर भी तुम्हारी ही परछाई का मारा हूँ
तुम्हे परखने की जुर्रत की मैंने
चमकते तारों और सुबह के उगते सूरज से हरा हूँ


तुमने जो मुझे दिखलाया
तुम्हे देखने के काबिल नही मैं
बहुत दूर हो पहुँच से मेरी
बन्दिगी ओ भरोसा करता हूँ तेरे रहमो करम की मैं


फकत जब भी समझू तुझे कम ऐ दिल
काबिलियत तेरी ओ ताकत ऐ रूह
इसलिए नही के तू सबसे बड़ा है
इसलिए के मैं छोटा हूँ तेरे सामने


मुश्किल है मेरे लिए ये कहना
हरदम है तेरे संग रहना
दिल की गहरायिओं से माना है तुझे
है तू मेरा चमकता तारा









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